इकना के मुताबिक, इस मानवाधिकार संगठन ने शुक्रवार को प्रकाशित अपने बयान में कहा कि अफगानिस्तान में हजारा शियाओं के लिए आईएसआईएस और तालिबान जैसे समूहों से ऐसा खतरा पैदा हो गया है।
इस संगठन ने अपने बयान में अफगानिस्तान में हजारा शियाओं की सुरक्षा के लिए तत्काल और समन्वित अंतरराष्ट्रीय उपायों का मुतालबा किया।
एशियन फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेवलपमेंट के एक बयान में कहा गया है कि "अफगानिस्तान का शिया समुदाय - जिसके सदस्य ज्यादातर हजारा हैं - तालिबान द्वारा व्यवस्थित भेदभाव, टारगेट हमलों, अलग-थलग करने, उत्पीड़न और गंभीर प्रतिबंधों का सामना करते हैं।"
इस सभा ने कहा कि "तालिबान ने शियाओं और हज़ारों के धर्म और आस्था की आजादी पर प्रतिबंध लगा दिया है।" इसके अलावा, तालिबान शिया हज़ारों के जबरन घर छोड़ने और गायब होने, मानवीय सहायता से महरुम करने के साथ-साथ पूरे अफगानिस्तान में इन नागरिकों की मनमानी गिरफ्तारी और गैरकानूनी हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार है।"
अफगानिस्तान में मुहर्रम के मातम पर तालिबान के प्रतिबंधों और इस देश में शिया अजादारा करने वालों के खिलाफ इस समूह की सेनाओं के हिंसक व्यवहार का जिक्र करते हुए इस संगठन ने लिखा है कि तालिबान ने अजादारा करने वालों पर हमला किया और उन पर गोलियां चलाईं, जिसमें कई लोग मारे गए और कई घायल हो गए।
एशियन फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेवलपमेंट ने मुहर्रम पर तालिबान के प्रतिबंधों और हजारा शियाओं पर इस समूह की सेना के हमले को शियाओं का "दमन" माना है। उन्होंने कहा कि शिया इससे प्रभावित हुए हैं।
"दो वर्षों में 700 हजारा शियाओं की हत्या और घायल होना"
एशियन फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेवलपमेंट ने अपने बयान में कहा है कि अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर दोबारा नियंत्रण पाने के बाद से 700 हजारा शिया नागरिक मारे गए हैं या घायल हुए हैं।
उन्होंने शिया पर्सनल ला कानून को हटाने, अफगान विश्वविद्यालयों में जाफरी फिक़ह पढ़ाने पर प्रतिबंध, अफगान राष्ट्रीय कैलेंडर से आशूरा की आधिकारिक छुट्टी को हटाने और मुहर्रम दशक के दौरान अजादारा पर प्रतिबंध को दमन के मामलों में माना।
इस संस्था ने "होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम" रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि जब से तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किया है तब से जुलाई 2022 तक, तालिबान द्वारा 25,000 अफगान हजारा शियाओं को उनकी बाप दादा की भूमि से जबरन विस्थापित कर दिया गया है।
इस संस्था के बयान के मुताबिक, तालिबान के हस्तक्षेप के कारण हजारा शिया लोग अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मिलने वाली मानवीय सहायता से भी महरुम हो गए हैं.
पिछले बीस वर्षों में व्यापक आतंकवादी हमलों ने, विशेषकर उन दो वर्षों में जब तालिबान समूह सत्ता में रहा है, विभिन्न देशों की संसदों को अफगानिस्तान में हज़ारों के नरसंहार पर चर्चा करने और प्रयास करने के लिए प्रेरित किया है।